Food habits Benefits and issues
भोजन के प्रकार
भीष्म पितामह ने अर्जुन को 4 प्रकार से भोजन न करने के लिए बताया था ...
पहला भोजन ....
जिस भोजन की थाली को कोई लांघ कर गया हो वह भोजन की थाली नाले में पड़े कीचड़ के समान होती है ...!
दूसरा भोजन ....
जिस भोजन की थाली में ठोकर लग गई,पाव लग गया वह भोजन की थाली भिष्टा के समान होता है ....!
तीसरे प्रकार का भोजन ....
जिस भोजन की थाली में बाल पड़ा हो, केश पड़ा हो वह दरिद्रता के समान होता है ....
चौथे नंबर का भोजन ....
अगर पति और पत्नी एक ही थाली में भोजन कर रहे हो तो वह मदिरा के तुल्य होता है .....
पांचवां नंबर का भोजन ....
अगर पत्नी,पति के भोजन करने के बाद थाली में भोजन करती है उसी थाली में भोजन करती है या पति का बचा हुआ खाती है तो उसे चारों धाम के पुण्य का फल प्राप्त होता है ...
छठा नंबर का भोजन ....
अगर दो भाई एक थाली में भोजन कर रहे हो तो वह अमृतपान कहलाता है, चारों धाम के प्रसाद के तुल्य वह भोजन हो जाता है.
सातवां नंबर का भोजन ....
बेटी अगर कुमारी हो और अपने पिता के साथ भोजन करती है एक ही थाली में तो उस पिता की कभी अकाल मृत्यु नहीं होती
क्योंकि बेटी पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती है ! इसीलिए बेटी जब तक कुमारी रहे तो अपने पिता के साथ बैठकर भोजन करें ! क्योंकि वह अपने पिता की अकाल मृत्यु को हर लेती हैं ...
संस्कार दिये बिना सुविधायें देना, पतन का कारण है ...
"सुविधाएं अगर आप ने बच्चों को नहीं दिए तो हो सकता है वह थोड़ी देर के लिए रोए ... पर संस्कार नहीं दिए तो वे जीवन भर रोएंगे ..
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Sudesh DJV writes on contemporary subjects in the form of Articles and poems which is in the interest of the Nation in particular and for Mankind in general.
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