A glimpse of Khajarana Indore
सन 1950 ईस्वी में महान फ़िल्म डॉयरेक्टर मेहबूब खां साहब ने पहली कलर फ़िल्म बनाने की जब शुरुआत की।
तब उन्होंने राजसी ठाठबाट को जीवंत दिखाने के लिए इंदौर के लाल बाग और नरसिंग गढ़ किले को चुना।
इंदौर रियासत के लोगों ने लालबाग , खजराना और सिमरोल में फ़िल्म की शूटिंग करने की इजाजत दे दी। खजराना जागीर भी होल्कर स्टेट में था। खजराना से निरंजनपुर जाने के लिए बड़ा सा गेट बना था। इसी गेट से होकर लोग गुजरते।
उस वक्त खजराना गाँव में ज्यादातर पाटीदार , नायता पटेल , पठान , कुरैशी और शाह समाज के लोग रहते थे। फ़िल्म में गाँव दिख रहा है। पुराने मिट्टी के मकान , खपरैलों की झोपड़िया, गोबर से लिपे ओटले कच्ची सँकरी गलियां जहाँ से मुश्किल से बैलगाड़ी निकल सके ये बेहतरीन नजारें दिख रहे हैं। खजराना गाँव कब्रस्तान से घुड़सवार 3 रास्तों में बंट जाते हैं वो सिन भी साफ नजर आ रहा है।
1990 तक खजराना की दक्षिण सरहद पर एक खाल ( नदी-नाला) हुआ करती था । जो अब भी है। पहले ये नाला खुला दिख जाता था अब सड़कों के नीचे है। ये खाल गणेश मंदिर के पास से बहते हुए खजराना श्मशान घाट से निकलकर बिजली ऑफिस के ठीक पास से सरकते हुए पुष्प नगर लिटिल फ़्लावर स्कूल से आगे बढ़कर कांकड़ वाले नाले से मिल जाती है।
आन फ़िल्म में ये खाल कई बार दिखाया गया है।
72 साल बाद भी खजराना में कुछ नजारे ऐसे हैं जो बिल्कुल नहीं बदले जैसे खजराना गाँव के पुराने खपरैल। जिन लोगों ने 70 से लेकर 90 दशक का खजराना अपनी आंखों से देखा है उन्हें ये वीडियो देखकर अतीत की याद जरुर आएगी।
मैं भी उन गिने - चुने लोगों में शामिल हूँ जिसने ये नजारे देखे हैं।
#जावेद_शाह_खजराना
Sudesh DJV writes on contemporary subjects in the form of Articles and poems which is in the interest of the Nation in particular and for Mankind in general.
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