कृषि बिल से संबंधित खुलासा
यदि कृषि बिल वापस हो जाता है तो क्या ये सरकार की हार होगी ?
ये किसान बिल किसी के हार या जीत का सवाल नहीं है, मैं लगभग 25 सालों से इनकम टैक्स दे रहा हूँ, लेकिन न तो इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, नरसिम्हा राव, देवेगौड़ा, अटलजी, मनमोहन सिंहजी ने कभी मुझसे पूछा : कि मैं टैक्स के रेट तय कर रहा हूँ, बता तुझे क्या चाहिए ! मैं ही क्यों, करोड़ों लोग टैक्स देते हैं, लेकिन क्या सरकारें उनसे पूछकर टैक्स दर तय करती हैं ?
आज हमारे देश में करोड़ों लोग कार, आटो, ट्रक वगैरा चलाते हैं, क्या RTO और पुलिस द्वारा लगाए जाने वाले कायदे और दंड इन सब से पूछकर बनाए गए हैं ? कानूनी तौर पर देखे तो कानून बनाने का अधिकार संसद के पास है और हर एक कानून में समय समय पर संशोधन भी किया जाता है, हमारे संविधान में भी समय-समय पर संशोधन हुए हैं।
कृषि आंदोलन में और एक दलील दी जा रही है कि बड़े उद्योगपति किसानों से 10/20 रुपए किलो में माल खरीद कर अपने शॉपिंग मॉल में ₹100 किलो बेचेंगे... ! अगर ऐसी बेतुकी दलील दी गई तो हर एक को अपना बिजनेस बंद करना पड़ेगा।
आज फाइव स्टार होटल किसानों से 50 रुपए लीटर दूध लेकर 400 रुपए में एक कप चाय बेचते हैं, पिज्जा वगैरा भी 10-20 रुपए के टमाटर, प्याज वगैरह लगाकर 200-300 रुपए में एक बेचा जाता है, तो क्या ये किसानों के साथ अन्याय हो रहा है ?
मल्टिप्लेक्स मे 100 रुपए में एक समोसा बेचा जाता है, तो जो बाहर ठेले पर 10 रुपए में समोसा बेचता है उसके साथ अन्याय हो रहा है ?
ग्राहक अपनी मर्जी का मालिक है, वो जो चाहे जहां से चाहें अपनी मर्जी से खरीदे, उसमें किसी के साथ न्याय-अन्याय की बात कहां है ?
और कांट्रैक्ट फार्मिंग तो हमारे देश में लेज, अंकल चिप्स, अमुल, आशिर्वाद आटा, पतंजलि, डाबर, हिमालय, हल्दी राम, पेप्सीको वगैरह बहुत सारी कंपनियां बरसों से कर रही है, क्या कोई किसान नेता बता सकता है कि इन कंपनियों ने कितने किसानों की जमीन-जायदाद, गाय-भैंस अब तक छिनी है ?
इस आंदोलन में एक और बात बोली जा रही है कि, किसान बिल से मंडिया खत्म हो जाएगी !
ऐसी बात है तो क्या DHL, Blue Dart, वगैरा आने से पोस्टल विभाग बंद किया गया ?
प्राइवेट स्कूल आने से क्या सरकारी स्कूल बंद हो गए हैं ?
अशोका, रिलायंस इंफ्रा, L&T इंफ्रा वगैरह आने से क्या सरकार का PWD विभाग बंद हो गया ? क्या ICICI, PNB, HDFC को सरकार ने इसलिए इजाजत दी की SBI बंद करनी है ? उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो ये ऐसी बेतुकी दलीलें है कि, हमें सिर्फ दूरदर्शन देखना है क्यों कि वो फ्री है !
इसलिए सरकार टाटा स्काई, डिश टीवी, नेटफ्लिक्स वगैरह को यहां आने की इजाजत ही ना दे, अगर वो आ गए और हमने उनको किसी महिने का पेमेंट नहीं किया तो वो हमारा TV उनके नाम कर लेंगे ! अब कानून की ही बात करें तो, ये जो अपने आप को किसान नेता बताते हैं क्या ये उनके खेत में काम करने वाले मजदूरों को कानून के तहत सैलरी और अन्य सुविधाएं देते हैं ?
अगर उन्हें सच में उद्योगपतियों से इतनी ही नफरत है तो उनको अपने खेत में ट्रेक्टर, पाईप, बोरवेल, पानी मोटर, कीटनाशक, प्लास्टिक वगैरा इस्तेमाल करना बंद करना चाहिए, क्योंकि वो भी किसी बिजनेसमैन ने ही बनाया है।
अगर ऐसी ही सड़कों को बंद कर कानून वापसी की मांग हुई तो कल धारा 370, तीन तलाक वापस करने के लिए लोग सड़कों पर उतरेंगे ! कल दहेज मांगने वाले सड़कों पर उतरेंगे की दहेज प्रथा तो राजा रजवाड़ों के काल से बरसों से चली आ रही है, इसका कानून हमे नहीं चाहिए, क्या अब भीड़ तय करेगी कि देश में कौनसा कानून चाहिए और कौनसा नहीं ?
इसलिए सरकार तुष्टिकरण बंद करे, अमीर किसानों को Income Tax के दायरे में लाए, अगर खेती लाभ दायक नहीं है तो छोड़ दें, अगर किसी दुकानदार की दुकान ना चले तो क्या सरकार उसके कर्जे माफ करती है ? दुकानदार तो छोड़ो, गरीब से गरीब मजदूर, वाचमैन, नाली साफ करने वाले सफाईकर्मी इनका भी कभी कर्जा माफ नहीं होता !
अंत में इतना ही कहूंगा कि - नया कृषि कानून गलत है या सही ये तो मुझे नहीं पता, अगर गलत है तो क्या पुराना वाला सिस्टम सही था ? अगर पुराना वाला सिस्टम सही था तो पिछले 70 सालो से हमारे देश के किसानों की हालत खराब क्यों है! और अब तक लाखों किसानों ने आत्महत्या क्यों की है ?
ये टिकैत, जो भी नेता बरगलाने/भड़काने की बातें कर रहे हैं इन्हें देश में अराजकता फैलाने का कंट्रेक्ट मिला हुआ है, इसमें कोई शक नहीं। सरकार को इन्हें आंदोलन से निकाल फैंकना चाहिए।
Sudesh DJV writes on contemporary subjects in the form of Articles and poems which is in the interest of the Nation in particular and for Mankind in general.
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