Sahaja Yoga Anahat Chakra Hridaya Chakra Jagdambe Maa
~~~
जय श्री माताजी ~~~
***** आत्मज्योति -- श्री शिव *****
१. आपके ह्रदय में जहा शिवजी का वास है वहाँ चार नाड़ियाँ है। उसमे से एक नाड़ी मूलाधार तक जाती है।
२. उसकी दूसरी नाड़ी हमें इच्छाओं के तरफ ले जाती है।
३. अब जो तीसरी नाड़ी है उसमे प्रेम उभरता है।
***** आत्मज्योति -- श्री शिव *****
१. आपके ह्रदय में जहा शिवजी का वास है वहाँ चार नाड़ियाँ है। उसमे से एक नाड़ी मूलाधार तक जाती है।
२. उसकी दूसरी नाड़ी हमें इच्छाओं के तरफ ले जाती है।
३. अब जो तीसरी नाड़ी है उसमे प्रेम उभरता है।
४.
अब ह्रदय में चौथी जो हमारे अंदर नाड़ी है वो अत्यंत महत्वपूर्ण है। वो चौथी नाड़ी कुण्डलिनी के जागरण से ही जागृत होती है और बाईं विशुद्धि से निकल के और मस्तिष्क में जाकर के कमल को खिलाती है। जब हमारा चित्त इन सब चीजों में लीन हो जाता है तो इस कमल में जीव आ जाता है ,
इसमें शक्ति आ जाती है
, या ऐसा समझ लीजिये जैसे किसी पौधे में पानी पद जाए तो वो जैसे अपने आप बढ़ता है इसी प्रकार ऐसा शुद्ध चित्त जिस मनुष्य का हो जाता है उसके ह्रदय कि काली खिलती है और वो कमल रूप होकर के सहस्त्रार में छा जाता है। फिर उसका सौरभ
, उसका सुगंध चारों और फैलता है। ऐसा मनुष्य एकदम नतमस्तक हो जाता है
, एकदम नतमस्तक होकर के सबके सामने झुका रहता है। कोई अगर कहता है कि आपने बड़ा मेरा काम कर दिया
, बड़ा चमत्कार कर दिया तो वो चीज उसे छूती नहीं। जैसे कि आनंद कि लहरे बाहर कि ओर तट पर जाकर के नाद करती है किन्तु वापस नहीं लौटती
, उसी प्रकार जिस मनुष्य कि ये स्थिति हो जाती है उसका सारा कार्य बाहर को नाद करता है। उसका असर बाहर दिखाई देता है। तट पर। उसके अंदर उसका कोई असर नहीं आता। ध्यान भी नहीं आता
, विचार भी नहीं आता। जो भी आपके निनाद है वो दूसरे तट पर जाकर छू जायेंगे। मेरे तक छूटे ही नहीं
, मुझे आते ही नहीं। उससे हो सकता है
, अंदर बैठे देवी देवता खुश हो जाए और चैतन्य को बहायें या कुछ करे। पर जहाँ तक मेरा सवाल है मुझे कुछ उसका आभास भी कभी नहीं होता कि आप मेरी जय जयकार गा रहे है। मैं शायद वहाँ होती ही नहीं।
… एक तरह से ह्रदय जो है वो प्रतिबिम्ब है महादेव का। शिव जी का स्थान तो सबसे ऊपर है
, विचारों से ऊपर
, ऐसे तत्व को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें इधर ध्यान देना चाहिए कि हमारा ह्रदय कितना साफ़ है। आपका ह्रदय गर स्वच्छ है तो आपका जो आइना है जिसमे परमात्मा का प्रतिबिम्ब पड़ने वाला है
, वो साफ़ रहेगा।
मानव का अंतिम लक्ष्य यही है कि शिवतत्व को प्राप्त करे। शिवतत्व बुद्धि से परे है
, उसको बुद्धि से नहीं जाना जा सकता। जब तक आप आत्मसाक्षात्कारी नहीं होते
, जब तक आपने अपनी आत्मा को पहचाना नहीं
, अपने को जाना नहीं
, आप शिवतत्व को नहीं जान सकते। शिव जी के नाम पर बहुत ज्यादा आडम्बर
, अंधता अंधश्रद्धा फैली हुई है। जो मनुष्य आत्मसाक्षात्कारी नहीं वह शिवजी को समझ ही नहीं सकता क्योंकि शिवजी कि प्रकृति को समझने के लिए सबसे पहले मनुष्य को उस स्थिति में पहुंचना चाहिए जहाँ पर सारे ही महान तत्व अपने आप विराजे।
शिवतत्व पर बैठा हुआ मनुष्य
, उसको किसी चीज कि इच्छा नहीं होती
, इच्छारहित होता है क्योंकि अपनी आत्मा से ही उसकी आत्मा संतुष्ट है। शारीर कि उसको कोई चिंता नहीं
, शारीर के आराम कि कोई चिंता नहीं।
सहजयोग में आने के बाद
, आपकी स्थिति वो हो जाती है जो आप जीवात्मा कहना चाहिए
, या आपके अटेंशन जो है
, चित्त जो है वह शिव जी के चरणों में लीन हो जाता है और शिव जी के चरणो में लीन होते ही क्या होता है कि आपके अंदर ही पंचतत्वों के जो गुण है वो भी बिलकुल सूक्ष्म हो जाते है। सहजयोग में गर आप शिवतत्व में जागृत हो जाए तो आपके अंदर के जितने सूक्ष्म
- सूक्ष्म , सूक्ष्मतर कहना चाहिए
, जो भाव है
, जो स्थिति है
, वो जागृत हो जाती है।
ऐसा आदमी जिसमे शिव जागृत है
, उनको कौन हाथ लगा सकता है। ऐसा आदमी हमेशा संरक्षित है। अपने वैयक्तिक जीवन में सहजयोग में आपको शिव जी का ही अनुसरण करना है
, क्योंकि नहीं करेंगे तो पहली चीज है दिल कि बिमारी हो जायेगी।
I like it , I do not Like it इसमें दो तरह का खेल होता है एक तो अति क्रोध से हार्ट पकड़ जाता है और दूसरा अति क्रोध के बाद पश्चाताप हो तो एन्जाइना कि बीमारी हो जाती है।
… आप अपना संरक्षण श्री शिव जी में खोजे।
प.
पू. श्रीमाताजी
, दिल्ली , १४.२.१९९९
Above is the video of "Shree Mataji" vani on Hridaya Chakra.
Sudesh DJV writes on contemporary subjects in the form of Articles and poems which is in the interest of the Nation in particular and for the Mankind in general.
Comments