राष्ट्रपति अब्राहम लिंक वायोग्राफी
एक घटना
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन एक बार संसद में बोल रहे थे, तो एक सामंती मानसिकता वाले सांसद ने लिंकन को टोकते हुआ कहा, "ज्यादा जोर से मत बोलो लिंकन, ये मत भूलना की तुम्हारे पिता हमारे घर के जूते सिलते थे अपनी हैसियत मत भूलो"
....तो लिंकन ने जवाब दिया, "महोदय, मुझे पता है कि मेरे पिता आपके घर में आपके परिवार के लिए जूते बनाते थे, और यहां कई अन्य लोग भी होंगे जिनके जूते उन्होंने बनाये होंगे ... क्योंकि जिस तरह से उन्होंने जूते बनाए, कोई और नहीं कर सकता। वह एक निर्माता थे । उसके जूते सिर्फ जूते नहीं थे, उन्होंने अपनी पूरी आत्मा उनमे डाली। मैं आपसे पूछना चाहता हूं, क्या आपको कोई शिकायत है? क्योंकि मुझे पता है कि खुद कैसे जूते बनाना है; अगर आपको कोई शिकायत है तो मैं जूते की एक और जोड़ी बना सकता हूं। लेकिन जहां तक मुझे पता है, किसी ने कभी भी मेरे पिता के जूते के बारे में शिकायत नहीं की है। वह एक प्रतिभाशाली, एक निर्माता थे , और मुझे अपने पिता पर गर्व है! "
उनके ऐसे जवाब पर वो सामंती सांसद चुप हो गया. लिंकन ने कहा " अब बोलो चुप क्यों हो गए तुम मुझे नीचा दिखाना चाहते थे मगर अब तुम खुद अपनी नीच सोच के कारण नीच साबित हुए "
उस भाषण को अमेरिका के इतिहास में बहुत मान दिया जाता है उसी भाषण से एक थ्योरी निकली 'Dignity of labour' और इसका ये असर हुआ कि जितने भी कामगार थे, उन्होंने अपने पेशे को अपना सरनेम बना दिया जैसे की शूमाकर ,जाँनिटर , बुचर , टेलर, आयरन स्मिथ, आदि।
श्रम को सम्मान दिया जाता है अमेरिका के अंदर इसी लिए वो अमेरिका है, दुनिया का सबसे बड़ी महाशक्ति !!
वहीं भारत में जो श्रम करता है उसका कोई सम्मान नहीं है।
वो छोटी जाति का है नीच है , यहाँ जो बिलकुल भी श्रम नहीं करता वो ऊंचा है।
जो सफाई करता है उसे यंहा गंदा समझते हैं और जो गंदगी करता है उसे साफ"
ऐसी सड़ी हुई मानसिकता के साथ दुनिया के नंबर एक देश बनने का सपना हम सिर्फ देख सकते है लेकिन वो पूरा कभी भी नहीं होगा।
#लिंकन_वायोग्राफी
Sudesh DJV writes on contemporary subjects in the form of Articles and poems which is in the interest of the Nation in particular and for the Mankind in general.
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