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History of Saudi's ancient Hindus

Entire information were collected from reliable internet sources... 

सऊदीअरब_का_हिन्दू_इतिहास 

इन गुफ़ाओं के बारे में आपको जानकारी दी जाएं, इससे पहले सऊदी अरब की जानकारी आपको देनी जरूरी है, जिससे हमारे तथ्य आपके विश्वास की कसौटी पर भी खरा उतरे .....

सऊदी अरब का नाम मात्र 'अरब' है, सऊदी नाम तो राजा का नाम था, अतः वही अरब के आगे लगा ।। अरब नाम वैदिककाल के ऋषि 'परशुराम' के पितामह 'ओर्व ऋषि' पर पड़ा है ।ओर्व का अपभ्रंस ही अरब है ....

वर्तमान सऊदी अरब पहले ईरान का ही एक भाग था । आज जो इराक है, वहां तक पारसियों का शासन था ।। सऊदी अरब तो पूरा का पूरा ही ईरानियों का था । ईरान आर्यभूमि में ही आता है, सऊदी अरब भी आर्यभूमि है । इसी सऊदी अरब का प्राचीन नाम फारस एवं नवीन नाम पर्सिया परशुराम का ही अपभ्रंस है । बाद में इसे अर्जुन ने जीता, तो यह पार्थ देश उर्फ पार्थिया भी कहा जाने लगा ।।

सऊदी अरब में मदीना नामक एक स्थान है ।। मेदिनी देवी दुर्गा का भी एक नाम है । हैरत की बात यह भी है, इस्लाम पूर्व अरब भी त्रिदेवी की पूजा करता था ।  ये देवियां थीं अल-लात, मनात और अल-उज्ज़ा ।। अल अरब में श्री के स्थान पर use होता है । देवी भगवती उर्फ अल्लाह का एक नाम #श्री भी है ।

अरब इतिहास के दस्तावेजों के अनुसार मक्का मंदिर परिसर में 360 मूर्तिया थी । उनमें कुछ मूर्तियां का वर्णन इस प्रकार है ;- 
वहां एक पक्षी की मूर्ति थी - "गरुड़देव",
एक मूर्ति का नाम Al- Deb+aran था । =वरुण/अरुण देव । allat की मूर्ति का वर्णन कुरान में भी आया है, यही देवी आगे चलकर अल्लाह नाम से विख्यात हुई । उस allat देवी के हाथ मे #जौ है, जो नवरात्रि में हम घर मे पवित्र मान उगाते है ।  ( स्रोत्र- Sir Williams Drummond की पुस्तक से ) 

मूर्तिपूजा का होना, उसमे भी भारतीय देवी देवताओं से उनका मेल खाना साधरण बात नही थी । मक्का परिषर भगवान विष्णु का मंदिर था ।। भगवान विष्णु ने बामन अवतार के समय एक पांव गयाजी में रखा था , दूसरा मक्का में, ओर तीसरा बलि के सिर पर .....हरिहरेश्वर माहात्म्य नाम की वैदिक पोथी है जिसमें हरि यानी ' विष्णु ' और " हर " यानी " शिव " इनकी महत्ता वर्णन की गई है , उसी पोथी में मक्का का हिन्दू इतिहास का वर्णन है ...

एक पदं गयायांतु मकायाम् तु द्वितीयकम् ।
तृतीयं स्थापितं दिव्यं मुक्त्यै शुक्लस्य सन्निधम् ॥

यानी विष्णु के तीन चरणों में से एक " गया " नगर में प्रतिष्ठित है , दूसरा मक्का नगर में और तीसरा शुक्ल तीर्थ के पास । उस तृतीय पद के स्थान का पता लगाना आवश्यक है । इतिहास की उथल - पुथल में उस स्थान की स्मृति नष्ट हो गई - सी दिखती है । शेषशायी विष्णु ब्रह्माण्ड का मूलाधार हैं । इसी कारण उनकी विशाल प्रतिमाएँ प्राचीन विश्व में विभिन्न प्रदेशों में थीं । वामनावतार में भगवान विष्णु ने बलिराज से त्रिपाद भूमि मांगी थी । उस समय बलि के कहने पर विष्णु का एक चरण गया में पड़ा , दूसरा मक्का में और तीसरा बलिराज के सिर पर । वहीं से बलि को पाताल में जाना पड़ा । वह घटना शुक्लतीर्थ के समीप घटी , ऐसा निष्कर्ष हरिहरेश्वर माहात्म्य पोथी से निकलता है । मक्का में मुख्य , केन्द्रीय विशाल मूर्ति शेषशायी विष्णु की ही थी , इसका एक और प्रमाण यह है कि  मक्का को इस्लामी परिभाषा में " हरम " कहते हैं जो स्पष्टतया हरियम् यानी विष्णु परिसर का द्योतक है " ।

नमाज_भी_हिन्दू_संस्कृति_की_देन

इस्लाम में दिन में पांच बार नमाज पढ़ने की प्रथा इसलिए पड़ी कि इस्लाम - पूर्व वैदिक परम्परा में पंचमहायज्ञ किए जाते थे - पंचाग्नि , पंचांग , पंचगव्य , गांव के पंच , पंचपात्र , पंचरत्न , इस प्रकार वैदिक परम्परा में पांच का बड़ा महत्त्व है । " नम " यानी आदर से झुकना और " यज् " यानी यज्ञ करना या पूजा भक्ति करना , अत : ' नमाज ' यह शब्द नम + यज इन दो संस्कृत शब्दों का बना रूप है । भगवान कृष्ण की पूजा करोली राजपरिवार पांच बार ही करता है, प्रमुख कृष्ण मंदिरो में भगवान की पूजा पाँच बार ही होती है ।

हिन्दुराजा_विक्रमादित्य_ने_अरब_को_शिक्षित_कियाथा

सन् १९४६ के लगभग उज्जयिनी में विक्रम संवत् को २००० वर्ष पूरे हो जाने का उत्सव मनाया गया । उसका एक विशेष स्मृति अंक प्रकाशित हुआ था । उसमें एक हिन्दु तथा एक मुसलमान ऐसे दोनों का लिखा एक लेख प्रकाशित हुआ था । उसमें प्राचीन अरबी कविता उद्धृत थी जिसमें विक्रमादित्य की प्रशंसा की गई थी । उस अरबी कविता के शब्द इस प्रकार थे --

"इवशश्फाई सन्तुल बिक्रमत्तुल फेहलमीन करिमुन । यतंफोहा वयोवस्सल विहिल्लहया समोमिनेला मोतकब्जेनरन् बिहिल्लाहा यूबी कैद मिन् होवा यफाकरू फजगल असरी नहान्स ओसिरिम् बेजेहोलीन यहा सबदुन्या कनातेफ नतेफी बिजिहलीन अतावरी बिलाला मसौरतीन फकेफ तसाबहु कौन्नी एजा मजाकरलहदा वलहदा अचमीमन , बुरूकन , कड तोलुहो वतस्तरू विहिल्लाहा याकाजिनाना बालकुल्ले अमरेना फहेया जौनबिल अमरे बिक्रमतून -(सैर उल् ओकुल , पृष्ठ ३१५)
 
इस कविता का अर्थ इस प्रकार है " भाग्यशाली हैं वे जो विक्रमादित्य के शासन में जन्मे ( या जीवित रहे ) वह सुशील , उदार , कर्तव्यपरायण शासक प्रजाहित दक्ष था । किन्तु उस समय हम अरब परमात्मा का अस्तित्व भूलकर वासनासक्त जीवन व्यतीत करते थे । हममें दूसरों को नीचे खींचने की और छल की प्रवृत्ति बनी हुई थी । अज्ञान का अंधेरा हमारे पूरे प्रदेश पर छा गया था । भेड़िये के पंजे में तड़फड़ाने वाली भेड़ की भांति हम अज्ञान में फंसे थे । अमावस्या जैसा धना अन्धकार सारे ( अरब ) प्रदेश में फैल गया था । किन्तु उस अवस्था में वर्तमान सूर्योदय जैसे ज्ञान और विद्या का प्रकाश , यह उस दयालु विक्रम राजा की देन है, जिसने हम पराए होते हुए भी हमसे कोई भेदभाव नहीं बरता । उसने निजी पवित्र ( वैदिक ) संस्कृति हममें फैलाई , और निजी देश ( भारत ) से यहाँ ऐसे विद्वान , पण्डित , पुरोहित आदि भेजे जिन्होंने निजी विद्वत्ता से हमारा देश चमकाया । यह विद्वान पण्डित और धर्मगुरु आदि , जिनकी कृपा से हमारी नास्तिकता नष्ट हुई , हमें पवित्र ज्ञान की प्राप्ति हुई और सत्य का मार्ग दिखा वे हमारे प्रदेश में विद्यादान और संस्कृति प्रसार के लिए पधारे थे । महमद के १६५ वर्ष पूर्व के अरबी कवि जिव्हम् बिनतोई की वह अरबी कविता जो विक्रमादित्य की प्रशंसा में लिखी गई है , वह विक्रमादित्य , बिनतोई से लगभग ५०० वर्ष पूर्व राज्य करता था , इससे यह निकलता है कि विक्रमादित्य की श्रेष्ठता की ख्याति उसः 485/510 इस्लाम की स्थापना होने के ६०० वर्षों में अरव लोगों में भी ज्यों - की त्यों बनी हुई थी यानी विक्रमादित्य की पावन स्मृति केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के अन्य अनेक देशों में भी फैली हुई थी । इससे विक्रमादित्य के अनेक गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है ।

मूहम्मद के चाचा द्वारा लिखा गया शिवभजन 

कफारोमख किक मिन उत्तुमिन तब बायक । कलुवन अमानुल हया वस समय चातानावपरोमा पान मसालबडे - एलियो मावा । बनुकापने जसल्ली - है पोमा तब अशयर ॥२ ॥ या अबा मोहा अअबू ममीमन महादेव को । मनोज्ञानी इलामुद्दीन मिनारम वा सथत्ता ॥३ ॥ या सहाबी के पम् फोमा - कमोल मिचे यौवन । याकुलुम ना सताबहन फोइम्भक तवज्जत ॥४ ॥ मस्सपरे अशलायन हसानन कुलम । नचुमुम अजा - अत गुम्मा गबुल हिन्दु ॥४ ॥ 

ऊपर उक्त गाविता का हिन्दी अनुवाद निम्न प्रकार होगा यदि कोई व्यक्ति पापी-महापापी बने । यह काम और क्रोध में दबा रहे । किन्तु यदि पश्चाताप कर यह सद्गुणी बन जाए ,तो क्या ईश्वर से सद्गति प्राप्त हो सकती है ? हां !!  अवश्य !!  किंतु वह यदि अन्तःकरण से शिवभक्ति में तल्लीन हो जाए तो उसकी आध्यात्मिक उन्नति होगी । भगवान शिव मेरे सारे जीवन के बदले । मुझे केवल एक दिन भारत में निवास का अवसर देवें, जिससे मुझे मुक्ति प्राप्त हो । भारत की एकमात्र  करने में सबको पुष्प - प्राप्ति और संलगमागम का नाम होता है । 

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अब करते है इन चित्रों की बात ... प्रत्येक फ़ोटो के नीचे डिटेल दिया है, की कौनसी गुफ़ा कहाँ है ??

पहली गुफ़ा- सऊदी अरब में
दूसरी - जॉर्डन के पेट्रा में
तीसरी - कर्नाटक भारत की बादामी गुफाएं ...

भारत तथा पेट्रा की तरह सऊदी अरब में भी विक्रमादित्य  ने गुफाओं का निर्माण करवाया था । लेकिन अरब वालो ने पूरा का पूरा पहाड़ ही तोड़ डाला, जिससे उनका हिन्दू अतीत कोई नही जान सकें 

आगे का विषय--

जॉर्डन - जनार्दन का अपभ्रंस है ।
जॉर्डन के निलट ही है गाजा पट्टी उर्फ गजपति 
गाजा पट्टी फिलिस्तीन में है, जिसकी राजधानी का नाम है --- रामलला ....






The above image is from ancient Iraq which then Saudi too was included. 

Collected the information from reliable internet sourse and posted by Sudesh DJV. 


Sudesh DJV writes on contemporary subjects in the form of Articles and poems which is in the interest of the Nation in particular and for Mankind in general.

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